LOVE POEM : NEHA



इस रंग बिरंगी दुनिया में ,
             अपना कुछ खोया हैं 
              हर बार हरेक  पल 
कई दफा सुनहरे  पननो ने ,
             मेरे आज को बदला हैं 
वो कई बार सुलझा देता है ,
           मेरे हालातो के  सवालो को
खुद को  इतना मृत बनाकर,
           मैनें खुद का वजूद कहाँ पा लिया ? 
कठोर शर्त पर सिर झुकाकर के ,
            खुद को कब  तक  धोखा दिया ? 
आ जाती हैं तेरे एहसासो की नमीं ,
             जब देखती हूँ काफ़िरो को
हस देती हूँ खुद पर कभी ,
             जब होता हैं खुद का खौफ 
अजीब दासतां हैं बरखा की,
             भीगे  हुए लफ्जो में
  कांपते है तो बता देते हैं रूख कि,
              बदलने वाला है मौसम
              वो जो कभी तेरा साथ था
मायूस नहीं है ये आँखे,
              तेरे  होने ना होने से
कल फिर दूसरा अंदाज़ होगा ,
                ज़िंदा या मृत मालूम नहीं 
              लेकिन वो भी अकस में भीगा होगा 
शाम फिर ढल जाएँगी ,
              लेकर  नए  सवेरे  को
              जो भी होगा,  कुछ तो नया होगा !! 

Comments

  1. Accha likha hai apne, saral, gehra aur khubsurat.

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  2. Hi Neha!

    " आ जाती हैं तेरे एहसासो की नमीं ,
    जब देखती हूँ काफ़िरो को
    हस देती हूँ खुद पर कभी ,
    जब होता हैं खुद का खौफ " - these lines struck me, they are so expressive of how numb we often feel when we think of experiences of our past love. Your courage while saying "मायूस नहीं है ये आँखे,
    तेरे होने ना होने से
    कल फिर दूसरा अंदाज़ होगा " is very prominent, and I like how you have written so optimistically.

    The rhyme scheme might be looked into, otherwise, your poem is easy to understand and expressive.

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