Ghazal - Neha
हर बार सिलवटे खुल जाती
डर से चिगांरी लाल हो जाती,
डर से चिगांरी लाल हो जाती,
महफूज सी किले की दीवारे
मुझे हर वक्त की याद दिलाती,
मुझे हर वक्त की याद दिलाती,
शर्म कफन का कब तक हो मुहँ पर
कयू ना पथ से आँधी गुम हो जाती ,
कयू ना पथ से आँधी गुम हो जाती ,
यू आँग लगाकर के चिलमन मे
राख हुए मुझमें ही फसती जाती ,
राख हुए मुझमें ही फसती जाती ,
हम कब तक प्रित के बीज को बोए
कयो ना हाल से बेहाल हो जाती,
कयो ना हाल से बेहाल हो जाती,
स्नेह! बोल कि ये शांत समय
तेरे वजूद की याद कयूँ दिलाती..
तेरे वजूद की याद कयूँ दिलाती..
Hello Neha!
ReplyDeleteMeter is to be worked upon, ubt first of all please brush up your ideas.
Cheers!
Jesus Loves You!
Thanks shubham . yes I will work on it. Meters k mujh thora idea nhi hai .
DeleteHi Neha. I really like the idea behind the ghazal. I'm not sure but maybe the format is not correct.
ReplyDeleteHi Neha!
ReplyDeleteI really liked the last line - स्नेह! बोल कि ये शांत समय
तेरे वजूद की याद कयूँ दिलाती..
Thoda kaam ho sakta hai iske form par toh yeh aur nikhar kar aaegi.
Great work.