Ghazal: Ganesh Gautam

बहुत दिनों से लगता है कि कोई मुझे बुलाता है
मेरी तड़प में रह कर अपने को सुलगाता हैं।

दिये सा जलना महबूब का काम है शायद
बेदिल लोगों में भी एक आस जगाता हैं।

प्रेम की बरखा का तो अलग मजा है यारों
बंजर जमीं को भी गुलज़ार कर महकाता हैं।

सितमगारों की इस दुनिया में बहुत जुल्म सहे
फिर भी अपना दिल बगावत से न कतराता हैं।

मोहब्बत भरी इस दुनिया में रुस्ना जरूरी है
कि चाँद भी महीने में एक बार मुस्कुराता हैं।

तितली के परों सा रंगीन होता है इश्क़
खुदाया, ये बूढ़े दिलों को भी जवां बनाता हैं।

'तहरीर' ये जिंदगी बहुत हसीन हो जाती है
जब महबूब कोई बाँहों में चला आता हैं।

तहरीर - My Pen Name 

Comments

  1. Dear Ganesh!
    Have a look at these-- I've introduced a set meter to your Ghazal according toa general rhythm I got from yours--



    बहुत दिनों से यूं लगता है कोई मुझे बुलाता है
    मिरी तड़प में रह कर शायद अपने को सुलगाता है
    दिये सा जलते रहना ही तो मिरे यार की फ़ितरत है
    कैसे-कैसे बे-दिल लोगों को वो आस बंधाता है
    प्रेम की रिमझिम बरखा का क्या अलग मज़ा है क्यूं यारो
    प्यार ही बंजर धरती को महका गुल्ज़ार बनाता है
    सितमगरों की दुनिया हम ने कैसे-कैसे ज़ुल्म सहे
    समझ नहीं आता वो आख़िर कैसे चुप रह जाता है
    प्यार-मुहब्बत में रूसा-रूसी का खेल ज़रूरी है
    चाँद भी हँसती शक्ल महीने में इक बार दिखाता है



    This is how you now try to do with the rest of your shers.


    Jesus Loves You!

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    1. Thank you for this, Shubham. It seems there is lot to learn yet. I will try to work on it.

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  2. Bhai sahi hai. Par poem ka theme thoda samajh nahi paya wese acha laga.

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  3. Halanki aapki ghazal thehar kar padhne yogya hai. Par phir bhi apne accha prayas kiya hai..

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  4. Hello Ganesh! I admire the way you have expressed the concept of love in the poem. Moreover, the line ( sitamgaaro ki duniya mein bhut zulm sahe..)it affects the reader in depth a lot.

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