Villanelle Poem: समय मेरा


समय मेरा रेत सा फिसल रहा है 
जितनी तेज़ी से पकड़ रही हूँ 
उतनी तेज़ी सी निकल रहा हैं 

कोशिशे हो रही है दिन पिघल रहा है  
रात के उस कोने को  बेपरवाही  से  जकड रही  हूँ 
समय मेरा रेत सा फिसल रहा है 

भागदौड़ भरे काम को निगल रहा है 
नींद भरी अंगड़ाई में सिकुड़ रही हूँ 
कितनी तेज़ी से दिन मेरा विफ़ल  रहा है 

बेढंगा सा इधर उधर बिखर रहा है 
करने को है काम कई  सारे और मैं ठिठक रही हूँ 
समय मेरा रेत सा फिसल  रहा है 

दुनिया  के  हैं ताने कई  और  समय सबका ठेकेदार  रहा है 
लेखन की अंतिम तिथि से बिदक रही हूँ 
निर्माण कार्य के उस गुमनाम से मजदूर की  तरह  निष्फ़ल  रहा है 

अधूरा इश्क़ हो गया है, ज़ी मिचल रहा है 
 दिल्ली की सर्दी सी मैं  हो कड़क रही हूँ 
समय मेरा रेत सा फिसल रहा  है 
फाइव  जी  की स्पीड की तेज़ी सा निकल रहा है 





Comments

  1. Hello!
    "लेखन की अंतिम तिथि से बिदक रही हूं"
    और मेहनत दरकार है, ख़ास तौर पर मिसरे कैसे लगाए जाते हैं, + the form. ख़याल उम्दा हैं, यक़ीनन।
    Cheers!
    Jesus Loves You!

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  2. Hello!
    "रात के उस कोने को बे-परवाही से जकड़ रही हूं", "भाग-दौड़ भरे काम को नगल रहा है"-- इस तरह के मिसरे ठीक करिए: अगर समय निकल रहा है तो बे-परवाही से जकड़ा नहीं जा सकता, कोशिश की जा सकती है, उस के लिए भी मिसरों को ठीक से लगाना ज़रूरी है।
    एक बार मेरे वाले विलनेल को पढ़िए, विधा की शुद्धता की दृष्टि से वो आप की मदद कर सकता है विधा साधने के लिए।
    Cheers!
    Jesus Loves You!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Hekko Kartiki!
      मेरा विलनेल निधा की शुद्धता के साथ-साथ मिसरों को बनाने और तराशने में भी आप की मदद करेगा।
      Cheers!
      Jesus Loves You!

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