राजनैतिक सिनेमा
ट्रैफिक के शोरगुल के बीच ,
पैसे कमाने की दौड़ के बीच ,
ज़िन्दगी की जंग -ए -मैदान में लड़ती -बढ़ती ,
मेट्रो,बस और ट्रैन की धक्का मुक्की के बीच ,
बेपरवाह बजते उन कानों मे इयरफोन्स के बीच ,
अपनी मन की धुन सुनना तो भूल ही गए है ,
आंख मूँद अपनी साँसों को महसूस करना तो भूल ही गए है,
दिन की खबर अख़बार की सहर ,
सुनिए ब्रेकिंग न्यूज़ ,
आज प्रधामंत्री ने क्या कहा मन की बात मे ,
सुनिए लेकर प्याला चाय का हाथ में ,
"भाइयो और बहनो मैं देश नहीं मिटने दूंगा ,
मैं देश नहीं झुकने दूंगा " कहकर जो जगाते है वादे अच्छे दिन के !
अब सुनिए क्या कहता है आम आदमी अपनी बात अपने मन मे ,
रोज़ मिटता है देश घुट घुट कर ,
जब होते है हमारे सिपाही शहीद
आए दिन आतांकवादी अटैक का शिकार बनकर ,
रोज़ जलता है ये देश उन बेजुबान नन्ही किलकारियों में
जो कुचल दी जाती है हवस के गलियारों में ,
जरा देखिये उन नौजवान पीढ़ी का गम
जो दबे है बेचारे एसएससी (SSC)का लेकर गम ,
हाथ में किताब नहीं ,ज़िन्दगी ये बर्बाद सही ,
तरक्की क्या ये देश को दिलवा पाएंगे ,
अच्छा तो तब होगा प्रधानमंत्री जी
जब ये बगावत पर उतर आएंगे
पर ये भी जज्बा आये कहाँ से
उलझा के रखा है युवा आज का आपने
बांध के रखा है उससे ,
रोटी कपडा और मकान के मायाजाल में
खुद की सुध अब ले कहाँ ,
बचपन में सपने देखने की ख्वाइश हुआ करती थी ,
आज सपनो में बचपन देखने की ख्वाइश करते है ,
शोर इतना के शांति भूल गए ,
डर इतना के जीना भूल गए ,
रोज़ जाते है थके हुए शरीर के साथ बिस्तर पर ,
ना रंग -ए - चमक की उम्मीद के साथ उठते है ,
मोहब्बत को छोड़िये ,
उससे नफरत का चोला पहना रखा है फिज़ाओ ने ,
जानवर से आदमी का इवोल्युशन कब आदमी से जानवर
में हो चुका है भूल जाईये ,
फिर भी अगर समझते है या समझ रहे है अपनी
दुनिया को करीब से ,
तो मुस्कुराइए आप बदलती जिंदगी का राजनैतिक
ज़िन्दगी की जंग -ए -मैदान में लड़ती -बढ़ती ,
मेट्रो,बस और ट्रैन की धक्का मुक्की के बीच ,
बेपरवाह बजते उन कानों मे इयरफोन्स के बीच ,
अपनी मन की धुन सुनना तो भूल ही गए है ,
आंख मूँद अपनी साँसों को महसूस करना तो भूल ही गए है,
दिन की खबर अख़बार की सहर ,
सुनिए ब्रेकिंग न्यूज़ ,
आज प्रधामंत्री ने क्या कहा मन की बात मे ,
सुनिए लेकर प्याला चाय का हाथ में ,
"भाइयो और बहनो मैं देश नहीं मिटने दूंगा ,
मैं देश नहीं झुकने दूंगा " कहकर जो जगाते है वादे अच्छे दिन के !
अब सुनिए क्या कहता है आम आदमी अपनी बात अपने मन मे ,
रोज़ मिटता है देश घुट घुट कर ,
जब होते है हमारे सिपाही शहीद
आए दिन आतांकवादी अटैक का शिकार बनकर ,
रोज़ जलता है ये देश उन बेजुबान नन्ही किलकारियों में
जो कुचल दी जाती है हवस के गलियारों में ,
जरा देखिये उन नौजवान पीढ़ी का गम
जो दबे है बेचारे एसएससी (SSC)का लेकर गम ,
हाथ में किताब नहीं ,ज़िन्दगी ये बर्बाद सही ,
तरक्की क्या ये देश को दिलवा पाएंगे ,
अच्छा तो तब होगा प्रधानमंत्री जी
जब ये बगावत पर उतर आएंगे
पर ये भी जज्बा आये कहाँ से
उलझा के रखा है युवा आज का आपने
बांध के रखा है उससे ,
रोटी कपडा और मकान के मायाजाल में
खुद की सुध अब ले कहाँ ,
बचपन में सपने देखने की ख्वाइश हुआ करती थी ,
आज सपनो में बचपन देखने की ख्वाइश करते है ,
शोर इतना के शांति भूल गए ,
डर इतना के जीना भूल गए ,
रोज़ जाते है थके हुए शरीर के साथ बिस्तर पर ,
ना रंग -ए - चमक की उम्मीद के साथ उठते है ,
मोहब्बत को छोड़िये ,
उससे नफरत का चोला पहना रखा है फिज़ाओ ने ,
जानवर से आदमी का इवोल्युशन कब आदमी से जानवर
में हो चुका है भूल जाईये ,
फिर भी अगर समझते है या समझ रहे है अपनी
दुनिया को करीब से ,
तो मुस्कुराइए आप बदलती जिंदगी का राजनैतिक
सिनेमा देख रहे हैं !
It's quite clear cut poem and satirical as well. you have used rhyming words to make it rhythmic. The only suggestion will be use of words and to make them more striking in some places.
ReplyDeleteThankyou for your suggestion Ganesh , will definitely work on it :)
DeleteHelo Kartikey!
ReplyDeleteThis is so powerful!
'राजनीतिक सिनेमा', fantastic thread to weave the entire poem with!
There's a lot of things in the poem, but what I liked the most that it focuses individual's plight.
Well done!
Cheers!
Jesus Loves You!
Thankyou for your wonderful comment on my poem Shubham :)
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