City Poem: Pallavi Verma
दिल्ली की लड़कियों सी
तेज़ जुबान
की धार
उलटे जवाब
से वार
'स्टाइल-फैशन'
की शान
बाज़ारी मोल टोल
का ज्ञान
रखने लगी हूँ मैं
दिल्ली में रहकर
दिल्ली की लड़कियों सी
हो गयी हूँ मैं।
यहाँ की हवा
और हवाओं से
लगती है जल्दी
हर साल यहाँ
बढ़ती जाती आबादी
राह भूल जाने पे
लोगों से कम
'गूगल मैप्स' से जयदा
बतलानी लगी हूँ मैं
दिल्ली में रहकर
दिल्ली की लड़कियों सी
हो गयी हूँ मैं।
विदेशी खाने के लिए
साउथ दिल्ली की
मुग़लई खाने के लिए
पुरानी दिल्ली की
गली-गली भटकती
पर क्या करूँ
रात को देर तक
बाहर रहने से
डरने लगी हूँ मैं
दिल्ली में रहकर
दिल्ली की लड़कियों सी
हो गयी हूँ मैं।
तेज़ जुबान
की धार
उलटे जवाब
से वार
'स्टाइल-फैशन'
की शान
बाज़ारी मोल टोल
का ज्ञान
रखने लगी हूँ मैं
दिल्ली में रहकर
दिल्ली की लड़कियों सी
हो गयी हूँ मैं।
यहाँ की हवा
और हवाओं से
लगती है जल्दी
हर साल यहाँ
बढ़ती जाती आबादी
राह भूल जाने पे
लोगों से कम
'गूगल मैप्स' से जयदा
बतलानी लगी हूँ मैं
दिल्ली में रहकर
दिल्ली की लड़कियों सी
हो गयी हूँ मैं।
विदेशी खाने के लिए
साउथ दिल्ली की
मुग़लई खाने के लिए
पुरानी दिल्ली की
गली-गली भटकती
पर क्या करूँ
रात को देर तक
बाहर रहने से
डरने लगी हूँ मैं
दिल्ली में रहकर
दिल्ली की लड़कियों सी
हो गयी हूँ मैं।
Bahot khoob, mujhe poem kafi sarcastic lagi. Aur jis tarah se tumne ek particular gender ka perspective laya h poem mai woh kafi interesting h.
ReplyDeleteHi Swati!
DeleteThank you. Yes, I have tried writing it in a sarcastic tone
Yeah! Delhi ki ladki. The twin personalities of a young woman in Delhi is poignantly presented by you. The blunt city girl ironically, transoms into a tender-timid woman at night. The reality of progressive woman in a metropolitan city.
ReplyDeleteThank you Preeti :)
DeleteHello Pallavi!
ReplyDeleteइसे कहते हैं बोल-चाल की कविता, जैसा महसूस किया, वैसा कहा! Appreciate this! This is the beauty of the poem a well!
Cheers!
Jesus Loves You!
Thank you Shubham :)
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