Hindi Villanelle: Shubham Arya

आँखें खोलो बाहर आओ क्यूँ घबराते हो
खोल में कैसे दुबक के बैठे अंदर-ही-अंदर
छुपे रहे अब तक क्या भैया बाहर आते हो
ज़िद देखो सुन पड़ता है जो गाना गाते हो
अच्छा-ख़ासा हूँ तौबा है आने से बाहर
आँखें खोलो बाहर आओ क्यूँ घबराते हो
पड़े-पड़े मिलता क्या है तुम को क्या पाते हो
धरती की सुंदरता देखो और तारे नभ पर
छुपे रहे अब तक क्या भैया बाहर आते हो
कहते हो अंदर तुम अपने को गरमाते हो
बात समझ लो जल ना जाओ ये गरमी पा कर
आँखें खोलो बाहर आओ क्यूँ घबराते हो
सब अपने हैं जिन से तुम मुँह फेरे जाते हो
स्मरण नहीं पहले से या अब रूप धरा निष्ठुर
छुपे रहे अब तक क्या भैया बाहर आते हो
माफ़ करो बस कितने ताने मारे जाते हो
इस धरती को स्वर्ग बना दें आओ मिल-जुल कर
आँखें खोलो बाहर आओ क्यूँ घबराते हो
छुपे रहे अब तक क्या भैया बाहर आते हो
~~शुभम् आर्य

(I've emulated Dylan Thomas' 'Do Not Go Gentle Into That Gentle Night')--
https://www.poets.org/poetsorg/poem/do-not-go-gentle-good-night

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