A Villanelle


एक दौड़ 


कितना आगे बढ़ गयी तुम जिंदगी ?
इस सफर पर मैं बस चलने को था।
क्यों तुम दौड़ने लगी जिंदगी?


यह ख़ालीपन क्यों बन गयी मेरी बंदिगी?
मेरा ख़ालीपन कभी खामोशी से भरा था,
खामोशी को भी छोड़, तुम कितना आगे बढ़ गयी जिंदगी?


कैसे-कैसे किस्से कागज़ों में समेटेगी?
नाम मेरा तूने अपनी कहानियों में लिखा था।
क्यों "एक नाम" के पीछे दौड़ने लगी तुम जिंदगी ?


अपनी लहर में तू मुझे बहाने लगी
जब अस्तित्व को अपने; वेग से तेरे बचाने को था
अस्मिता मेरी कैद कर मुझसे भी आगे बढ़ गयी तुम जिंदगी ।


कभी खुद से न मिल सका, कैसे तू यह समझ पाएगी ?
"कौन  हूँ मैं" यह सवाल मुझे तड़पा रहा था
तू भी एक पहेली बन क्यों दौड़ने लगी जिंदगी ?


खुद को टटोलते हुए तेरे रास्तों में लड़खड़ाने लगा; तू मुझे क्या थामेगी
तेरे करीब मैं आने को था, तुझे अपना बनाने को था,
पर एक पल रुके बिना कितना आगे बढ़  गयी तुम जिंदगी?
मैं भी चल रहा था ना तुम्हारे साथ फिर क्यों तुम दौडने लगी जिंदगी?                                                              
                                                                                         ~प्रीति

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