अन्य कविता 1 : प्रियंका निर्वाण


मेरी परवाह नहीं मान लिया ये मैंने
वादा जो किया था उसी को याद कर ले
अपने वो फैसले जो बन गए आंसू
उनको तू अपने अल्फाजों से वापस ले ले
 
नहीं है मोल मेरी दोस्ती का ये जान लिया मैंने
अपने हर्फों को ही महोब्बत दिखा दे
जो काम करने जा रही है तू
उस बात को जहाँ से मिटा दे
 
मेरे वजूद नहीं मन तेरे लिए कुछ भी
अपने अक्ष को ही खुदा बना ले
जो कहा था कभी नाराज़गी में तूने
वो बात अपने दिल-ओ-दिमाग से भुला दे
 
मेरे कीमत शायद इतनी नहीं कि तू सोचे
अपनी आरजू को ही अनमोल बना ले
वो जो ख्वाब देखे थे उस हसरत में
वो लम्हें मेरी रूह से निकाल दे
 
मेरे ख़्वाबों से कोई वास्ता नहीं मान लिया
पर अपनी ख्वाहिशों को तू अपना ले
क्यूँ तदपा रही है रूह को अपनी बे-वजह
अपनी साँसों को मेरी हथेली से महसूस करा दे...
 
एहसास नहीं कीमती मान लिया मेरे
अपनी ख्वाहिशों के ही चिराग जला दे
जो न-ख़ुशी सी फैली है तेरे मेरे दरमियाँ
उसकी शम्मा तू अब बुझा दे
 
धडकनों की परवाह नहीं मेरी तुझे
पर अपनी रूह की ही आरजू सजा ले
मुझसे दूर जा रही है तू
मेरे दोस्त..मेरे पीर..बस मुझे अपने पास बुला ले ||

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