अन्य कविता 3 : प्रियंका निर्वाण
आज ये तेरी नज़रों में सवाल
क्यूँ है
मुझे पहचान नहीं रही,तेरी आँखों
की चमक
कम क्यूँ है.....
बिन कहे सुनने वाले हम
एक-दूजे की
आज ये शोर-गुल में भी सन्नाटा क्यूँ है
हर अलफ़ाज़ सज जाता था
जब लम्हें बीतते थे
आज ये अलफ़ाज़ तेरे जहन में
सवाल क्यूँ हैं
धडकनों की धमक से सूरतें
मुस्कुरा जाती थी
आज मेरे अक्ष में आकर
भी तू सुनसान क्यूँ है
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