NEHA - RESPONSE1 POETRY OF FAIZ AHMED FAIZ (BOL KE LAB AZAAD HA TERA)
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुत्वाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक तेरी है
देख कि आहन-गर की दुकाँ में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
खुलने लगे क़ुफ़्लों के दहाने
फैला हर इक ज़ंजीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक़्त बहुत है
जिस्म ओ ज़बाँ की मौत से पहले
बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहना है कह ले
शब्दकोश :
·
सुतवाँ जिस्म- कसा हुआ शरीर,
·
आहन-गर- लौहकार,
·
सुर्ख़- लाल,
·
आहन- लोहा,
·
क़ुफ़्लों- बंद
प्रतिक्रिया में
बोल के ये देश की आशा
अब न खाली जाएगी
राष्ट्र नाम के चर्चे पर
हमको न बहुत रूलाएगी
अब न खाली जाएगी
राष्ट्र नाम के चर्चे पर
हमको न बहुत रूलाएगी
बोल के लब आज़ाद है तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
कहने दे कहना है जो हमको
अब भी रात बहेतरी है
अब भी रात बहेतरी है
ये जन्मो जहाँन के सारे सितम
हम मिलकर साथ सुलझा लेंगे
देख ये के चिगांरी के किससे
तुझमे आग लगा देंगे
देख ये के चिगांरी के किससे
तुझमे आग लगा देंगे
बोल के दिन अब दूर नहीं है
बोल हमसे ही आएगा
आएगा तब देखगा सबको
ये झंडा फिर लहराएगा
ये झंडा फिर लहराएगा
बोल के हम लोग एक है
ये उन्माद न भड़काएगे
दुश्मन भी खुद के न बनके
खुद को न जलाएंगे
बोल के सच जिंदा है अब तक
बोल ,जो कुछ कहना है कह ले...
बोल ,जो कुछ कहना है कह ले...
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