Other Poem 1: Pallavi Verma


साकेत मेट्रो स्टेशन 


मेट्रो स्टेशन के दो 'एग्जिट' दवार 

दोनों से निकलती 

अलग दुनिया 


एक दाएं हाथ का दवार

नसों सी पतली गलियां 

एक नस से 

दूसरी नस में 

बहते लोग 
 
उन्ही के बीच जमे हैं  

खान पान और बाजार  


दूजा बाएं हाथ का दवार  

 चादर सी 

बिछी चौड़ी सड़कें 

चादर पे कड़ाही करती 

गाड़ियां और उन्ही के बीच 

भवरों से मंडराते लोग  


दोनों ओर

धुप से बचते लोग 

पर एक ओर हाथ में 

गमछा, किताब, अखबार

तो दूसरी ओर

छतरी और सनग्लासेस  


मेट्रो स्टेशन के दो 'एग्जिट' दवार 

दोनों से घुसते 

अलग किरदार 






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