Other Poem 2 : Pallavi Verma
रसोई घर
हम दोनों का रिश्ता
धीमी आँच पर
पक रहा है
कभी कभी तेज़ आँच का
तड़का लग जाता
पर अब उससे भी
पचाना सीख लिया है
या शायद सीख जाएंगे
कुछ सुने सुनाए
नुस्के आज़माना
हो तो तुम एक दम आलू जैसे
अधिकतर जगह घुल मिल जाते
देर के सन्नाटे में तुम्हारी बातों
का सवाद हर बार अलग है
कभी तीखे मसाले वाली
तो कभी फीकी लगती
काश तुम्हारी बातों को
मैं बर्फ की तरह जमा सकती
जब परेशानियों की गर्मी
हमें तंग करती तो शायद
उस पिघलती बर्फ की ठंडाई
हमें राहत देती
हम दोनों का रिश्ता
धीमी आँच पर
पक रहा है
कभी कभी तेज़ आँच का
तड़का लग जाता
पर अब उससे भी
पचाना सीख लिया है
या शायद सीख जाएंगे
कुछ सुने सुनाए
नुस्के आज़माना
हो तो तुम एक दम आलू जैसे
अधिकतर जगह घुल मिल जाते
देर के सन्नाटे में तुम्हारी बातों
का सवाद हर बार अलग है
कभी तीखे मसाले वाली
तो कभी फीकी लगती
काश तुम्हारी बातों को
मैं बर्फ की तरह जमा सकती
जब परेशानियों की गर्मी
हमें तंग करती तो शायद
उस पिघलती बर्फ की ठंडाई
हमें राहत देती
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