Other poem 2: Yatish
वैज्ञानिकों का कहना है कि
ब्रह्माण्ड फ़ैल रहा है
लगातार
ग्रह, नक्षत्र, तारे, सारे
एक दूसरे से
दूर होते जा रहे है
शायद इसीलिए
हम दोनों के बीच की दूरी भी
लगातार
स्वतः, अपने आप ही
बढ़ती जा रही है
बढ़ती ही जा रही है
तुम मुझसे अनगिनत
प्रकाश वर्ष दूर हो
तुम्हारे उजले चेहरे
से आने वाला प्रकाश
मद्धम होता जा रहा है
तुम्हारी यादें अंतरिक्ष की
अनंततम अंधकारमयी गहराइयों में
गुम होती जा रही हैं
मै निरुपाय असहाय सा
बस तुम्हें दूर जाता देख रहा हूँ
धीरे धीरे तुम्हारी छवि और
धुँधली होती जा रही है
मै बस इस आस में हूँ
इस फ़िराक में हूँ
कि ब्रह्माण्ड के किसी कोने में कहीं
मुझे कोई wormhole मिल जाए
जो space-time के
ताने-बाने को चीरता हुआ
क्षण भर में
फिर से
मुझे तुम्हारे पास ले आए
Comments
Post a Comment