Other poem 2: Zara si sham aur hai

                                            Zara si sham aur hai

जरा सी शाम और है मुझे जरा और बैठने दो |
इस हल्की सी रोशनी में खुद का एहसास होने दो |
जरा सी ज़मीन और है मुझे खुद को सिमट जाने दो
समंदर को आने दो तेज़ इन लहरों की खामोशी मुझको सुनने दो |
अब सूरज भी और ढल गया इस दुनिया के किनारे पर |
वह ढल रहा है और थोड़ा ढल जाने दो|
जरा सी शाम और है मुझे जरा और बैठने दो
इस हल्की सी रोशनी में खुद का एहसास हो रहा है होने दो और होने दो||

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