Other Poem 3 : Pallavi Verma

नाईट पावरकट्स 


रात को 9 से 12  के बीज

इस घर में बिजली

एक बार तो चली ही जाती है



बचपन की तरह

अब बिजली जाने पर

डर नहीं लगता

तंग होना भी

कम हो गया है



रात के सन्नाटे में

अंधेरा और मैं

एक दूसरे को घूरते हैं

अच्छा है

यह कोई नहीं देख सकता



मजबूरन

मेरे दिन भर के विचारों की थकान

इस समय उतर रही होती है

समय बीतने का एहसास

मेरे ख्यालों के साथ

इसी अँधेरे में गुम हो जाता

मैं इन ख्यालों को अभी ढूंढना चाहती हूँ

उन्हें हाथों की नज़रों से

 टटोलकर

छूना चाहती हूँ


अपनी गहरी नींद के सपनो में

मैं उनसे ऐसी मुलाकात नहीं करना चाहती

की सुबह उठाते ही सब अजनबी से लगें


इन्ही ख्यालों से भरा

मेरे मन का अँधेरा

कमरे के अँधेरे

को शायद अपना लेता है

और दोनों एक हो जाते है



कुछ दिनों से घर में बिजली नहीं गयी

मैं बिजली के जाने का इंतजार कर रही हूँ

Comments

  1. Hello pallavi, i just recall my childhood days after reading your poem. Theek isi tarah light chli jaya karti thi, pehle hum darte the phir dhire dhire adat si bangayi aur ghar ke saman main candles aur torch add hogayi. Par agar isme kuch stanza bachpan ki un mastiyo ki add hojaye to aur bhi jyda maza ayega pdhne main sath hi jyda relate hosakega. Baki apne sach main kafi accha prayas kiya hai..:)

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