Other poem 3: Yatish



मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं                                                -पाश





मेरे साथ तुम तो नहीं
तुम्हारी अनुपस्थिति ज़रूर है
तुम्हारे साथ मैं नहीं अगर
मेरी कविता तो रह सकती है
इसीलिये
मैं लिख रहा हूँ एक कविता
जिसे तुम ताउम्र 
अपने साथ संभालकर 
मेरे एवज में रखना

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वह विलुप्तप्राय भाषा
जो हमारे बीच पनपी थी
जिसे सारी दुनिया में सिर्फ
हम दोनों जानते थे
उसके शब्द मेरी अलमारी में
इधर-उधर तीतर बीतर
बिखरे पड़े हैं
कुछ पर तो दीमक लगने लगा है
किसी-किसी को चूहों ने कुतर लिया
सावन के मधुर गीतों में भी सीलन आ गई है

कुछ तो शायद तुम्हारे पास 
अब भी रखे होंगे न

इससे पहले कि वो सारे शब्द
अपने मानी खो बैठे
मैं उन्हें समेटकर
अपनी कविता में पिरो रहा हूँ
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उस कविता के अंदर
जगह-जगह पर मैंने छुपायी है
ढेर सारी खामोशियाँ
एक निभृत एकांत और निश्चल मौन
तुम उन्हें ढूंढकर कभी
अकेले में ध्यान से सुनना


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जब मेरा मन जीवन
की तल्खियों में गहरा डूबने लगा
तब मैंने अपने अंदर की सारी बची कुची मिठास
उस कविता में उंढेल दी
हर एक शब्द को प्रेम की चाशनी में डुबोया

देखना उस कविता को चखकर तुम्हें
संसार के सारे मिष्ठान्न
फीके लगने लगेंगे

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जब इस संसार में
तुम्हारा दम घुटने लगे
तो मेरी कविता की पंक्तियों में
टहलने निकल आना
राहों की परवाह किए बगैर
अनजान गलियों में खो जाना

क्या पता ऐसे ही तकदीर के
किसी चौराहे पर कभी
हम फिर से मिल जाएँ
जैसे एक दूजे से हम
मिले थे पहली बार



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