other poem 1- NEHA

हर  बार फलसफे  फिके  गए
हाँ ! नहीं  मरे जिंदा  गए
भुखमरी चिखो  सी  बेबस
खाली  पत्तल को  समेटे हुए
हर  बार फलसफे  फिके  गए

सौ बार बरसा  सूखा  पानी
पानी  का  रंग  भी  काला  हैं
उन  काली  जुबान  के  लोगों  के
मकसद  भी काले होके गए
हर  बार फलसफे  फिके  गए

जब  रात को सोती  मेरी  आँखें
खोती, होती  सपनो  में
वो  भूरे  आँखो  वाले  दुशमन
लेकर  मेरे  अपने गए
हर  बार फलसफे  फिके  गए

माना  और  जाना  था  हमने
दिल- ए- चाँद जिनको
वो  चाँद भी  उगता  नही था  खास
हम  उनसे  स्नेह  करते-करते  गए
हर  बार फलसफे  फिके  गए

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