Political Poem: Swati Kumari

चिपका देख उनको दीवारों पर
हम बस यूं दीदार करने लगे

झूठ बोलना उनसे कम ना हुआ
हम 72,000 पर विचार करने लगे


नई नई स्कीमों के बाण
हम पर तिरों प्रकार चलने लगे

अब न्याय होगा इस गाने से वो
हम आशिकों का शिकार करने लगे

शादी उन्होंने भी कि नहीं
हम ये सोच, इंतजार करने लगे

भाषण में कुछ भी बोलते थे वो
हम सिमरन बन स्वीकार करने लगे

टीवी में दिन रात उनको देख
हम साथ के तिरस्कार रहने लगे

आशिकी में कमी कभी नहीं की
हम उनके नाम से आचार भरने लगे

सरकार चले ना चले यह चलेगा
हम इस तरह उनका प्रचार करने लगे

Comments

  1. Hello swati, this poem is well written. rajneeti aur cinema par kahi gayi ye batein yu toh aam si lagti hai par inko aise chhoti chhoti lines main likh kar bayan karna kafi nayapan lgta hai pdhtey huye.

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