Response poem 1 - Ganesh Gautam
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं
बरसात का मौसम कभी पहाड़ों को लांघ कर कश्मीर नहीं आता हैं।
-समतल जगहों का मौसम
अगाह शाहिद अली
-समतल जगहों का मौसम
अगाह शाहिद अली
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं
फर्क बस इतना है बाकि जगहों से
कि बरसात वहाँ खून की होती हैं
औलों की जगह पत्थर बरसते हैं
कुछ खुश होते है तो कुछ रोते है
कोई आवाज़ उठाता, कोई चुप रह जाता हैं।
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं।
फर्क बस इतना है बाकि जगहों से
कि बरसात वहाँ खून की होती हैं
औलों की जगह पत्थर बरसते हैं
कुछ खुश होते है तो कुछ रोते है
कोई आवाज़ उठाता, कोई चुप रह जाता हैं।
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं।
यहाँ कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी,
ज़ायके, झूले और मोहब्बत की कहानी
कश्मीर में नाव बहा करती है आशा की
भूख है सुकून की, फिर भी खाना खाते हैं
कश्मीर के लोग बस अमन चाहते हैं
जन्नत, फिर बसाने का खयाल आता हैं।
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं।
ज़ायके, झूले और मोहब्बत की कहानी
कश्मीर में नाव बहा करती है आशा की
भूख है सुकून की, फिर भी खाना खाते हैं
कश्मीर के लोग बस अमन चाहते हैं
जन्नत, फिर बसाने का खयाल आता हैं।
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं।
आग की तरह जलता तो खाक हो जाता
मगर ये धीरे- धीरे आंंच पर जलता हैं
कितने लोग मरे सूखे पत्ते जैसे झड़े
हर बार इंसानियत यूँ ही दफन होती रही
इन्हीं सिलसिलों में साल बीत जाता हैं
मगर ये मंजर बदलता नज़र न आता हैं।
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं।
मगर ये धीरे- धीरे आंंच पर जलता हैं
कितने लोग मरे सूखे पत्ते जैसे झड़े
हर बार इंसानियत यूँ ही दफन होती रही
इन्हीं सिलसिलों में साल बीत जाता हैं
मगर ये मंजर बदलता नज़र न आता हैं।
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं।
"अम्मा लखनऊ का जिक्र किया करती
और बनारस की धुनों को बजाया करती "
बनारस वो शमशान की भूमि जहाँ मोक्ष मिलता हैं
कश्मीर स्वर्ग होकर ज्यादा अलग नहीं है अब
धीरे-धीरे वो भी शमशान बनता जाता हैं
कश्मीर में आज भी धुआँ उठता जाता हैं।
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं।
और बनारस की धुनों को बजाया करती "
बनारस वो शमशान की भूमि जहाँ मोक्ष मिलता हैं
कश्मीर स्वर्ग होकर ज्यादा अलग नहीं है अब
धीरे-धीरे वो भी शमशान बनता जाता हैं
कश्मीर में आज भी धुआँ उठता जाता हैं।
बरसात का मौसम कश्मीर आता हैं।
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