Response Poem 2: Ganesh Gautam
A Monsoon Note on Old Age
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एक मानसूनी लेख पुरानी उम्र पर
यह पचास साल बाद है: मैं
अपने आप में बैठा हूँ, लिपटा हुआ
मानसून की उमस में, मेरी त्वचा
अपने आप में बैठा हूँ, लिपटा हुआ
मानसून की उमस में, मेरी त्वचा
सिकड़ी हुई सी, एक थका हुआ-सा व्यक्ति,
जिसको मालूम है किसी के न होने का;
खिड़की की सलाखें
जिसको मालूम है किसी के न होने का;
खिड़की की सलाखें
मेरे ऊपर जेल की छवि बनाती हैं;
मैं तारों को फेंटता हूं,
पुराने ताश की गड्डी की तरह;
मैं तारों को फेंटता हूं,
पुराने ताश की गड्डी की तरह;
रात वापस पा लेती है
वो बरसात का अनुभव। मैं ज्यादा दिखा देता हूं
तुम्हारी तस्वीर, साफ करते हुए
वो बरसात का अनुभव। मैं ज्यादा दिखा देता हूं
तुम्हारी तस्वीर, साफ करते हुए
मौत के पार की दुनिया।
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