Response Poem 2 - Translation

एक ख्वाब दोपहरी सा, देखा मैंने,
जब दिल्ली पे दी, दस्तक मैंने - आगा शाहिद अली 

I Dream It Is Afternoon When I Return to Delhi - Agha Shahid Ali


मैं इंतज़ार कर रहा हूँ,
खड़ा हूँ अकेला,
पुराना किला।
दरियागंज की बस के लिए  संभला , मैं निकला,
देखा जब  मेरा हाथ तो  खाली  ही निकला।
"कूदो,कूदो ,"कोई चिलाया ,
सालो से कुछ बचाया है मेरे लिए
ये सुनाया,
चांदी के सिक्को से भरा एक हाथ दिखाया।
"कूदो,कूदो।"फिर कोई बौराया
कोई नहीं था जाननेवाला मेरा
ये बतलाया। एक पोलिसवाला ,
हाथ में चांदी की हथकड़ी लिए,
मुझसे टिकट चेक कराया।

घबराहट में पसीनो से लबरेज़,
मैं चलती बस से उतरा,
डॉल म्यूजियम को पार करते हुए ,
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की हेडलाइंस सा बिखरा,
"बिहार की जेल में ,कैदी हुए अंधे ,
हरिजनों का गांव जला कर ऊंचे किये जमींदारों ने अपने कंधे। "
हांफता सा में दरयागंज रुका ,
गोलचा सिनेमा के सामने थोड़ा झुका।


हाथ में सिगरेट जलाये
वहां सुनील ,खड़ा मुस्कुराये
और मुझसे पूछे बिन रहा ना जाये ,
"करीबन दस साल होगये है , तुम अभी तक बदल  नहीं पाए ,
वो तुम्हारा ही आवाज़ थी बस में मुझे अब ये महसूस हो पाए !"
अनसुना करके सवाल को बोला वो शोर से ,
" मियां , फिल्म शुरू  हो गयी है ,
और आपके लिए एक्स्ट्रा टिकट ले ली गयी है ,"
दोनों हम तपाक से भागे और दौड़े :

देखा , परदे पर अनारकली को दूर लेजाया जा रहा है ,
संगमरमर के फ्लोर पर उसकी मोतियों सी झालर वाली झुमकियां
फैली हुई है।
किसी भी वक़्त उसको जिन्दा दफना देंगे ।
"अरे ये तो दी एन्ड है ,"हैरान सा में पलटा
सुनील को देखा। वो नहीं दिखा कहीं भी ।
अचानक धक् से मेरे कंधे को किसीने ने झुंझलाया ,
सिनेमाघर का प्रवेशक था , दस साल पुरानी  है मेरी टिकट
ये बतलाया।

एक बार टटोला हाथों को अपने,
खाली ही दिखे।
इंतज़ार को वापस खुद में घुमाया,
और पाया , मैं  वही  खड़ा हूँ अकेला
वहीँ पुराना  किला।
खाली बसों का चला एक मेला सा,
और मुझे मेरी पहचान का मनो मिल गया हो झमेला सा ,
चारों और मेरे भीख मांगती औरतें,
अपने बच्चों के साथ चला रही थी सिलसिला,
मुझे पैसे देने का,
मेरे लिए आंसुओं बहाने का,
मेरे अधूरेपन को,
खिसियाने का,
मेरी गरीब यादाशत को भूल जाने का।


















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