Response poem 3: Bhargavi
In response to Chandni Chowk, Delhi (Agha Shahid Ali)
(Not a translation, more of a poem deriving from the theme of the Chandni Chowk, Delhi)
निगल जा तू बेपरवाह इन
गलियों की तपती फ़िज़ा
चंद क़दमों का इन्तिज़ार
फिर बारिश की बूंदों की बहार
इस पिघलती जुबां पर पूछी -
और इरादा है क्या सफर पर बढ़े चलने का
रोके मुझको ख्याल इस
प्यासी जुबां का
जो शब्दों से करे बयान
पर हो न सके,
जैसे कटी ज़ुबाँ
खून सी, खो ना सके।
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