Response Poem 3 : Ganesh Gautam



Memory (From Amherst to Kashmir)
Translation

याद
           फै़ज अहमद फै़ज से
निराशा भरे रेगिस्तान में,  मैं सरसराहट के साथ हूँ
तुम्हारे आवाज़ की,  तुम्हारे होठों की मृगतृष्णा (मिराज),  जो अब हिलती सी नजर आती हैं।
दूरियों की घास और धूल ने इस रेगिस्तान में
तुम्हारे गुलाब़ खिलने दिए है। 

मेरे पास से जो हवा गुजरती है तुम्हारे चुंबन का एहसास कराती है। वो सुलगाती है,
धीरे-धीरे,  अपनी कस्तूरी खुशबू को। और कहीं दूर,
बूंद-बूंद, क्षितिज से परे,  गिर रही है
तुम्हारे उजले चेहरे की वो ओस।

याद ने अपने हाथ ऐसे रखे समय के चेहरे पर, उसको छुआ
इतने प्यार से कि हालांकि ये हमारे
जुदा होने की सुबह है, मगर ऐसा लगता है अभी वो रात आई है,
जो तुम्हें मेरी खाली बाहों में ले आई हैं।

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