Response poem 3: Yatish
जिस दिल
में
भय बैठा
हो
वहाँ
इश्क़ के
लिए
कैसे जगह
बन सकती है
या फिर
जिस
दिल में
इश्क़
सेंध
लगा दे
वहाँ
फिर भय
कैसे और
कितनी
देर टिक
सकता है
जहाँ पर
हो सोच-विचार
तर्क-वितर्क
की दरकार
इश्क़
नही वो है व्यापार
जो
जूनून जूनून में
मजनूँ
हो जाए
लोक लाज
समाज
के भय
से दूर
वही
इश्क है
वो
इबलीस जिसकी
मोहब्बत
का सिला
क़ैद-ए-जहन्नुम
निकले
जो
हल्लाज बन
अल –हक़
हो जाए
वही
इश्क है
जो फैज़
बन
जेलों में
सिगरेट
के
डिब्बो पर
हम
देखेंगे लिख जाए
जो ज़ुल्मत-ए-ज़िया
से लड़कर जालिब
की तरह आज़ाद हो जाए
वही इश्क है
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