Response Poem 4: Ganesh Gautam
Just a few returns from dust, disguised as roses.
--Not all, only a few returns by Agha Shahid Ali
--Not all, only a few returns by Agha Shahid Ali
सिर्फ कुछ ही लौटकर आते है उस मिट्टी से, वो भी गुलाब बनकर
-सब नहीं, सिर्फ कुछ ही लौटते है
अगाह शाहिद अली
-सब नहीं, सिर्फ कुछ ही लौटते है
अगाह शाहिद अली
सिर्फ कुछ ही लौटकर आते है उस मिट्टी से,
वो भी गुलाब बनकर
जैसे तुम आये हो
मैं कर रहा था शायद
तुम्हारा ही इंतज़ार
इतने समय से
वो भी गुलाब बनकर
जैसे तुम आये हो
मैं कर रहा था शायद
तुम्हारा ही इंतज़ार
इतने समय से
मैं मुरझा चुका था,
धीरे-धीरे पत्तियों की तरह बिखर जाता
और मिल जाता इस धरती में
धीरे-धीरे पत्तियों की तरह बिखर जाता
और मिल जाता इस धरती में
जहाँ तुम भी बसे थे
क्या पता मिल जाते
हमारे कुछ कण
क्या पता मिल जाते
हमारे कुछ कण
और बन जाते क्या कुछ
या शायद न रहता याद
किसी को कुछ भी
या शायद न रहता याद
किसी को कुछ भी
मगर फिर खिल गया हूँ
जब से तुम आये हो
तुम ही तो जानम्
जब से तुम आये हो
तुम ही तो जानम्
इस बाग को महकाए हो।
मैं ढूँढता रहता था
तुम्हारा नाम-ओ-निशान
मैं ढूँढता रहता था
तुम्हारा नाम-ओ-निशान
इस धरती में
उस अम्बर में
हवाओं से बात किया करता था
उस अम्बर में
हवाओं से बात किया करता था
आंधियों से भी
मुलाकात
किया करता था
मुलाकात
किया करता था
बारिश जब भी आती
मुझको झंझोड़ती
मगर मैं
मुझको झंझोड़ती
मगर मैं
तुम्हारी ही बात किया करता था
अच्छा लगा कि
तुम वापिस आए हो।
अच्छा लगा कि
तुम वापिस आए हो।
अनहोनी को होनी के
शब्दों में पिरोकर
एक आशा रुपी माला को
शब्दों में पिरोकर
एक आशा रुपी माला को
मैं जपा करता था
शरीर जुदा होने पर
इतना दर्द नहीं होता
शरीर जुदा होने पर
इतना दर्द नहीं होता
जितना रूह जुदा होने पर
तड़प होती हैं।
उसी तड़प को
तड़प होती हैं।
उसी तड़प को
मैं अब तक सहा करता था।
हर पल
तुम्हारी याद के लम्हें
हर पल
तुम्हारी याद के लम्हें
मेरी आँखों से
मोती झलते
और न जाने कितने सपने
मोती झलते
और न जाने कितने सपने
आँखों में पलते रहते
सपने सारे सच होंगे
अब जो तुम आये हो।
सपने सारे सच होंगे
अब जो तुम आये हो।
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