Response poem no.2 Rohini Sharma

This is a translation to the Agha Shahid Ali's poem "Memories", page no.263

         " यादें "
तन्हाई का रेगिस्तान ।
मैं यहां तुम्हारी आवाज की परछाईयों के साथ हूं,
तुम्हारे होंठ मृगजल की तरह, अब कंपन कर रहे है।
फासलों के तिनके और धूल ने इस रेगिस्तान को
 तुम्हारे गुलाब के साथ खिलने दिया है।

मेरे पास जो हवा है सांस लेती है यह तुम्हारा प्यार है।
यह धीरे- धीरे भीतर ही भीतर जलता है,
  इसकी कस्तूरी।
और अब, बुंद-बुंद , क्षितिज के परे,
तुम्हारे चमकीले चेहरे की ओस चमकती है।

यादों ने अपना हाथ समय के चेहरे पर रखा है,
छुआ है इसे दुलार से,
हालांकि यह फिर भी हमारी बिदाई की सुबह है,
अगर फिर ऐसी ही रात आती है, तो ला रही है
तुम्हें मेरी खाली बाहों की तरफ।

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