Response poem no.3 Rohini Sharma
This is a translation of Agha Shahid Ali's poem "Philadelphia, 2:00 a.m." on page no.67.
फिलाडेलफिया़, 2:00 ए. एम.
मौत के सारे मार्ग फिर से खुल जाएंगे,
जब बंद हो जाएंगी सलाखें,
पैनिनसिलवेनिया;
डिस्को अपनी रोशनी अब भी चित्रित करता है।
मेरी आंखें धूंधला जाती हैं,
फिर बंद हो जाती हैं,
दर्पण में;
मैं गलती हुई शिलाओं को अपने
शीशे में निगल जाता हूँ।
मृत्यु से गुजरते हुए,
देख रहा हूँ छोटे मार्गों को।
मेरी त्वचा नुक्सान के किराए
के घंटों से तन जाती है।।
फिलाडेलफिया़, 2:00 ए. एम.
मौत के सारे मार्ग फिर से खुल जाएंगे,
जब बंद हो जाएंगी सलाखें,
पैनिनसिलवेनिया;
डिस्को अपनी रोशनी अब भी चित्रित करता है।
मेरी आंखें धूंधला जाती हैं,
फिर बंद हो जाती हैं,
दर्पण में;
मैं गलती हुई शिलाओं को अपने
शीशे में निगल जाता हूँ।
मृत्यु से गुजरते हुए,
देख रहा हूँ छोटे मार्गों को।
मेरी त्वचा नुक्सान के किराए
के घंटों से तन जाती है।।
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