Response poem : Stationery : Kumar Abhimanyu

चाँद सूरज में तब्दील नही हुआ।
वह बस उत्तर गया, रेगिस्तान पर
फैली चादरों में, चाँदी की परतें
जो बनाई थी तुम्हारे ही हाथों ने।
अब ये रात तुम्हारी कारखाना है
और दिन तुम्हारा बाज़ार
खाली पन्नों से भरी हुई है ये दुनिया

लिखना मुझे।

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