Response Poem3: A Ghazal-- Shubham Arya
A response to Aga Shahid Ali's 'Existed'--
जिस्म के मानो भीतर ज़िंदा रहते हैं
हम पिंजरे के अंदर ज़िंदा रहते हैं
ज़ेहन बनाता रहता है कुछ तसवीरें
बस यादों के मंज़र ज़िंदा रहते हैं
पलक झपकते आते-जाते हैं लम्हें
एक सफ़र है शब भर ज़िंदा रहते हैं
पूछो गर मुझ से तो 'शुभम्' बस ये है वजूद
आ कर ज़िंदा जा कर ज़िंदा रहतें हैं
~~शुभम् आर्य फ़रीदाबादी
Word meanings--
ज़िंदा= alive, living, existence
ज़िस्म= body, material, substance
मानो/माना= accept, admit, agree, mind, respect, assume, as if
भीतर/अंदर= inside
पिंजरा= cage
जेहन= mind
तस्वीर= picture, portrait, image, painting
याद= remembrance, memory, recollection
मंज़र= spectacle, scene, view
पलक= eyelids, wink, instant; पलक झपकना/झपकाना= squint
लम्हा= a minute, moment
सफ़र= journey, voyage, travel
शब= night
वजूद= existence, being, life, philosophy
Hey Shubham, Thank you for writing a response on Shahid's "Existed." It is one of my favourite poem by Shahid.
ReplyDeleteजीवन, अस्तित्व और अस्मिता का बेहद खूबसूरत और जटिल मिलाप मुझे इस ग़ज़ल में महसूस हुआ. शुभम, यह आपके द्वारा लिखी गयी कई ग़ज़लों में से मेरी एक पसंदिता कविता बन गयी है. मतला(Matla) जीवन के अस्तित्व कि तथ्य की ओर इशारा कर रहा है। मक़्ता(Maqta) में वजूद से जीवन को जोड़ा गया है. क्या ग़ज़ल में बिन वज़ूद कोई जिन्दा नहीं रह सकता यह बताया गया है? शाहिद की कविता में जीवन के वज़ूद को स्थापित करने के लिये एक साथी (life companion) के साथ की अहम भूमिका है. आपने वज़ूद के किस पहलू से जीवन को जोड़ा है ?