1) Independent Poem: A Ghazal
वो चेहरा इन आँखों में बसा होता था
उस चेहरे में सारा ब्रह्माण्ड छुपा होता था
तस्वीर देख उसकी मैंने क्यूँ मुँह मोड़ लिया
उसका अक्स टूटे आईने में भी छिपा होता था
कैसे नम हो जाने देती इन आँखों को
जिनमे उसके सुरमे का नूर चढ़ा होता था
माथे की लकीरें भी तक़दीर तराशती थी कभी
एक बिंदी से ही उसका अस्तित्व उजागर होता था
साथी मेरा चुरा ले गया निशानियां अपनी
रिश्ते का बाँध उन निशानियों से बंधा होता था
सन्नाटा और ख़ालीपन में कैसे यह आँगन पनपेगा
जहाँ रिश्तों के सौगातो का शोर बसा होता था
अब "प्रीत"तेरा मेरा चाँद बना फिरता है ,
कभी तारों से मेरा आकाश रचा होता था.
-प्रीति
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