Ghazal : Manya

आओ आज शाम साथ बिताएं, कह दें दिल में जो ग़म बाक़ी है
साथ चखना भी लेते आना, परसों  की खरीदी हुई रम बाक़ी है 

जी चाहे फूलों की बारिश कर तुम्हारा हाथ पकडे यूँ ही बैठी रहूं  
मगर साथ मिल कर पंखुड़ियां साफ़ करवा देना अगर शरम बाक़ी है 

यूँ तो ध्यान नहीं रहता मुझे ख़ाना ना पीना तुम्हारी याद में इस तरह 
लेकिन बटर चिकन के साथ तिबारा पूछती हूँ अगर नान गरम बाकी है 

बेबुनियाद शक के दायरे बढ़ा कर ख़ामख़ाह मुझसे रूठा न करो 
तुम्हें शोभा नहीं देता क्यूंकि अकल तुम में ज़रा कम बाक़ी है  

मेरी यादों के चेहरे सभी तुम से मेल खाते हैं ये बात सौ आने सच है 
किन्तु तुम सोचो कि मैं दुःख में विलीन हूँ तो ये तुम्हारा वहम बाकी है 

कभी लौट आये मेरे दर सोच कर की झट तुमसे लिपट जाउंगी 
दोबारा सोचना क्यूंकि मेरी गली में और भी बहुत आइटम बाकी है

कहूँ कई बार खुद से की भूल जा उसे मान्या, वो तेरे काबिल नहीं है 
जो तब भी ना मिटे कम्बख़्त तो धरती पर नुक्लिअर बम बाकी है 

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