Independent Poem 3 : Manya

पैरों तले है जहाँ
बस चलने की देर है
राहों पर छोड़ने हैं निशाँ
बस ज़िन्दगी जीने की देर है।
वक़्त को ना रोको यारों
वह ख़ुदा की भी नहीं सुनता
जितना पाया है ख़ुश हो कर बिता लो
गिले-शिकवों में क्या है रखा।
जी ले
कि मौके हज़ार नहीं हैं
उड़ चल
कि पर तेरे अभी बरक़रार ही हैं।

Comments

Popular posts from this blog

Response poem 3: Devyani

Love Poem: Prabahan Shakya