Love Poem : मनमौजी लेख़क



बात लिखता है 
जज़्बात  लिखता  है 
बेबात लिखता है 
गम का चोला  ओढ़  हर बात लिखता है 
कहने को कुछ छोड़ा ही कहां  उसने 
अब  तो  वो हर दिन अपनी नयी और ताज़ा मोहब्बत की सौग़ात  लिखता है 
कहा था  मुझसे की  कभी मोहब्बत  नहीं होगी  अब उसे 
की ये बात साल मे  मौसमों  की तरह हर  तिमाही  मे  बिकता  है 
ना जाने कैसा  दिल  है  उसका  की  हर  दिल  संभाल  के रखता  है 
मुस्कुराना पसंद है उसे  इसलिए  अपने  ग़म  को नई  मुस्कुराहटों में  छुपा  के  रखता है 
हम भी रहे थे  मुस्कान  उसके होंठों  की कभी 
की आज भी  उस खिलखिलाट  को  वो  ढाँप  के  रखता है 
वक़्त  नहीं है कहकर जो टाल  दिया  करता था बातें 
आज उसी फुर्सत को  वो  अपनी  क़िताब  में भांप  के लिखता है  



Comments

  1. Hi Kartiki.

    The following line-
    मुस्कुराना पसंद है उसे इसलिए अपने ग़म को नई मुस्कुराहटों में छुपा के रखता है
    is very well put. This is so true of us who hide our emotions either to get acceptance, or to blatantly ignore our bad experiences. Our inability to face them is very vivid in this statement.

    The title of your poem- मनमौजी लेख़क
    is apt to the entire content. But, I feel like the author was not manmauji, rather was more inclined towards hiding feelings and safety (which they aspire to have). Maybe reflect into it a little more?

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    Replies
    1. Hey Bhargavi , thankyou for your feedback :)

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