Love Poem: Ganesh Gautam
इंतज़ार
इंतज़ार करने की आदत नहीं है उन्हें,
फिर भी मेरा इंतजार किया करते हैं।
मोहब्बत का इजहार कभी किया नहीं लेकिन
हकीकत मालूम है कि मोहब्बत बेशुमार करते हैं।
शायद कोई लफ्ज़ ज़बां पर न आये
अगर नाम देना चाहे इस रिश्ते को।
क्योंकि यह एक प्राथना है जिसे हम जिया करते हैं
इसके अनगिनत ज़ाम हम पिया करते हैं।
कभी मीरा ने श्याम से, तो कभी इमरोज ने अमृता से
यह वही मोहब्बत है, जिसे अब हम किया करते हैं।
इंतज़ार करने की आदत नहीं है उन्हें,
फिर भी मेरा इंतजार किया करते हैं।
मोहब्बत का इजहार कभी किया नहीं लेकिन
हकीकत मालूम है कि मोहब्बत बेशुमार करते हैं।
शायद कोई लफ्ज़ ज़बां पर न आये
अगर नाम देना चाहे इस रिश्ते को।
क्योंकि यह एक प्राथना है जिसे हम जिया करते हैं
इसके अनगिनत ज़ाम हम पिया करते हैं।
कभी मीरा ने श्याम से, तो कभी इमरोज ने अमृता से
यह वही मोहब्बत है, जिसे अब हम किया करते हैं।
Hello Ganesh!
ReplyDeleteSince this piece is not a Ghazal, yet you're ending your lines with rhyming along with a sense of refrain. Therefore, to my mind, should look at 'the Geet' form, and then try to see if you could do something with this piece of yours .
Jesus Loves You!
I will have to look for this and I will see what can i do.
ReplyDeleteIss kavita ke dwara apne vo kaha hai jo knhi na knhi jante to hum sab hai par itni khubsurti se unhe shabdo main nahi utar sakenge shayad. Sach main kafi relate karpayi hu apki kavita ko khudse. Thanks for providing me words for my feelings.. Adbhud...:)
ReplyDeleteAre you redefining the notion of love or describing it in a new form? Small poem but a good one bro. Keep it up. Par prarthana ko jite kaise hai? Ya kiya jata hai?
ReplyDeleteHi Ganesh, I feel like this part needed effort as I could not understand the rhyme scheme-
ReplyDeleteशायद कोई लफ्ज़ ज़बां पर न आये
अगर नाम देना चाहे इस रिश्ते को।
क्योंकि यह एक प्राथना है जिसे हम जिया करते हैं
इसके अनगिनत ज़ाम हम पिया करते हैं।
Otherwise, it was a great effort!