Villanelle poem: क्या तुम्हें वो रात याद है ?
क्या तुम्हें वो रात याद है ?
जब हमने घंटों बात की थी
और तुम्हारी बातों के हर शब्द हम महसूस कर रहे थे|
और तुम्हारी बातों के हर शब्द हम महसूस कर रहे थे|
क्या तुम्हें वो रात याद है ?
जब तुम्हारे हाथ मेरे हाथों को छू रहे थे
उस पल हम तुम्हारे हाथों की लकीरें बन जाना चाहते थे|
उस पल हम तुम्हारे हाथों की लकीरें बन जाना चाहते थे|
क्या तुम्हें वो रात याद है?
तुम्हारी नजरों के जुंबिश में हम खो चुके थे
इन्हीं नजरों के ज़रिए तुम्हारे दिल में उतरना चाहते थे|
इन्हीं नजरों के ज़रिए तुम्हारे दिल में उतरना चाहते थे|
क्या तुम्हें वो रात याद है?
जब तुम हमारे साथ चल रहे थे और जाते जाते तुमने साथ ना होने का वादा किया था
लेकिन मेरी रुह को यह मंजूर ना था और उस रात वह मुझे रुखसत करके चली गई|
क्या तुम्हें वो रात याद है ||
Tanya
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लेकिन मेरी रुह को यह मंजूर ना था और उस रात वह मुझे रुखसत करके चली गई|
क्या तुम्हें वो रात याद है ||
Tanya
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Hey Tanya, the thought process behind your poem is appreciable but the structure of the poem is not correct as far as a villenele is concerned. It should have 5 tercets, both the first and the third lines need to be rhyming as to my knowledge. You've written the quatret but the tercets need to be more perfect. Hope you will do more better in the next coming poems. All the best.
ReplyDeleteThankyou so much. I will rewrite it.
DeleteHello Tanya!
ReplyDeleteIn accord with Dhiman.
Cheers!
Jesus Loves You!